निरंतर बढ़ रहा इंजीनियरों का कुनबा, बोर्ड के गठन के वक्त थे 2 चीफ इंजीनियर, अब 18 हो गई इनकी संख्या
3 दशक पहले 45 हजार कर्मचारियों की तुलना में अब 18 हजार रह गई कर्मचारियों की संख्या
कभी सरकार को कर्ज देता था बिजली बोर्ड, अब 700 करोड़ पहुंच गया घाटा
अफसरों की मौज और फील्ड स्टॉफ पर काम का अतिरिक्त दबाव


शिमला
राज्य बिजली बोर्ड का पेट भारी और टांगे निरंतर कमजोर हो रही है। बोर्ड में मोटी तनख्वाह लेने वाले इंजीनियरों का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है और फील्ड में काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या निरंतर घट रही है। बिजली बोर्ड के गठन के वक्त मात्र 2 चीफ इंजीनियर थे।
आज इनकी संख्या 18 हो गई है। तीन दशक पहले तक राज्य में करीब 4.90 लाख विद्युत उपभोगता थें। तब फील्ड कर्मचारियों की संख्या 45 हजार से अधिक थी। अब विद्युत कनेक्शन बढकर 22 लाख हो गए है और फील्ड कर्मचारी घटकर करीब 18 हजार रह गई हैं।
चीफ इंजीनियर की तर्ज पर अधीक्षण अभियंता, अधिशासी अभियंता, सहायक अभियंता और कनिष्ठ अभियंताओं की फौज में भी कई गुणा ईजाफा हो चुका है।
विद्युत कनेक्शन बढ़ने के साथ कर्मचारियों की संख्या में इजाफा करने के बजाय कमी की जा रही है। इससे बोर्ड की कार्य-कुशलता प्रभावित हो रही है।
बिजली बिल बनाने से लेकर लाईन इत्यादि बिछाने तक के काम ठेकेदारी प्रथा से करवाए जा रहे है। इससे राज्य सरकार का हमेशा कमाउ पूत माने जाने वाला बिजली बोर्ड अब कंगाल हो रहा है, जबकि 1970 से 1980 के दशक तक बिजली बोर्ड सरकार को कर्ज देता था। आज बोर्ड का खुद का घाटा 700 करोड़ से अधिक हो गया है।
ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी
चौधरी ने बताया कि पहले बिजली बोर्ड ही था। अब बोर्ड के अलावा हिमाचल प्रदेश पावर कॉरपोरेशन, हिमाचल प्रदेश ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन में भी इंजीनियरों की तैनाती की जाती है।
इसी तरह एसजेवीएनएल में भी डेपुटेशन पर इंजीनियर भेजे जाते है। प्रदेश में जगह-जगह नए-नए डिविजन खोल रहे है। इनमें भी इंजीनियरों की तैनाती जरूरी है। इंजीनियरों के साथ साथ फील्ड स्टाफ की भी भर्ती की जा रही है।
अधिकारियों की मौज और कर्मचारियों पर काम का बोझ
बिजली बोर्ड के दर्जनों अफसरों को सरकार एसजेवीएन, एचपीपीटीसीएल व अन्य प्रोजेक्टों में भी डेपुटेशन या सैकेंडमेंट आधार पर तैनाती देती हैं।
इससे अधिकारियों की तो मौज लगी हुई है, लेकिन फील्ड कर्मचारी काम के बोझ तले परेशान है। एक-एक कर्मी चार से पांच कर्मचारियों का काम देख रहा है।
नई भर्तियां न होने से रिटायरमेंट पर पहुंच चुके 50 से 55 साल के बुजुर्ग कर्मियों को भी विद्युत खंबों पर चड़ने को मजबूर किया जा रहा है। इससे कई बार कर्मचारी हादसों का भी शिकार हो रहे हैं। फील्ड स्टाफ की कमी की वजह से विद्युत उपभोगताओं को भी कई बार अच्छी सेवाएं नहीं मिल पाती है।
बर्फबारी में कई-कई दिनों तक बहाल नहीं हो पाती बिजली
बर्फबारी के दौरान विद्युत लाइन क्षतिग्रस्त होने की सूरत में बिजली बहाल होने में कई-कई दिन लग जाते है। जिस हिसाब से बोर्ड में कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं,उसकी तुलना में आधे पदों पर भी नई भर्तियां नहीं की जा रही है। कुछेक भर्तियां ऑउटसोर्स पर की जा रही है। इन्हें नाममात्र मानदेय देकर शोषण किया जा रहा है।
इंजीनियरों की फौज पर पूर्व ऊर्जा मंत्री ले चुके संज्ञान
बिजली बोर्ड में इंजीनियरों की फौज पर पूर्व ऊर्जा मंत्री अनिल शर्मा भी संज्ञान ले चुके है। उन्होंने बोर्ड से सरप्सल इंजीनियरों की सूची मांगकर युक्तिकरण का भरोसा दिया था, लेकिन इनकी सूची तैयार होने के बाद अनिल शर्मा इन पर कार्रवाई करने से कन्नी काट गए।
इस तरह होती है इंजीनियर की तैनाती
बिजली बोर्ड में अब 19 चीफ इंजीनियर (सीई) हो गए हैं। प्रत्येक सीई के अधीन 3 से चार एसई काम कर रहे हैं। यानि बोर्ड में 55 से ज्यादा एसई हो गए है। प्रत्येक एसई के अधीन 4 से 5 एक्सईन, हरेक एक्सईन के अधीन 4 से 6 एसडीओ और एसडीओ के अधीन 3 से 5 जेई भी काम कर रहे हैं।
फील्ड स्टॉफ की करनी होगी भर्ती: वर्मा
हिमाचल विद्युत कर्मचारी महासंघ के सचिव हीरालाल वर्मा ने बताया कि बिजली बोर्ड को सही ढंग से चलाने के लिए फील्ड स्टाफ की भर्ती करनी होगी। अफसरों के नए-नए गैर-जरूरी पद सृजित करने से बचना होगा। इससे बोर्ड पर कर्ज बढ़ता जा रहा है।