टेंपरेचर में बहुत ज्यादा वेरिएशन भी भूस्खलन का बड़ा कारण : भूविज्ञानी

शिमला
हिमालय की गोद में बसे हिमाचल प्रदेश में बार-बार भूस्खलन और चट्टानें खिसकने की घटनाएं हो रही हैं। बरसात में यकायक इन घटनाओं में इजाफा हो जाता है ।इंडस्ट्री डिपार्टमेंट के भूवैज्ञानिक अतुल शर्मा ने बताया कि खासकर किन्नौर और लाहौल स्पीति में तापमान में बहुत ज्यादा वेरिएशन होने से इस तरह के हादसों की पुनरावृत्ति हो रही है।
उन्होंने बताया कि हिमालय रीजन की पहाड़ियों में चट्टानें खिसकने का दूसरा बड़ा कारण ग्रेनाइट रॉक है। बरसात में बारिश का पानी ग्रेनाइट रॉक की इन चट्टानों के बीच भर जाता है। रात के समय तापमान गिरने से पानी जमने लगता है और जब तेज धूप खिलती है। इसके बाद पानी पिघलना शुरू हो जाता है। इससे चट्टानें खिसकने लगती हैं।
अवैज्ञानिक ढंग से सड़कों का निर्माण, हैवी-ब्लास्टिंग
पहाड़ों में शूटिंग स्टोन का तीसरा सबसे बड़ा कारण अवैज्ञानिक ढंग से सड़कों का निर्माण, जल विद्युत परियोजनाएं बनाने के लिए हैवी-ब्लास्टिंग करना और टनल का निर्माण माना जा रहा है। खासकर हैवी ब्लास्टिंग और टनल निर्माण से पहाड़ हिल जाते हैं जो बरसात में बटसेरी व न्यूगलसेरी जैसे हादसों का कारण बनते हैं।
अभी नौनिहालों की तरह है हिमालय के पहाड़
भूविज्ञानी अतुल शर्मा ने बताया कि हिमालय रीजन की पहाडिय़ां अभी नौनिहालों की तरह हैं। जैसे छोटी उम्र में बच्चे संवेदनशील होते है, ठीक वैसे ही हिमालय के पहाड़ भी अभी संवेदनशील हैं। इनसे ज्यादा छेड़छाड़ करना सही नहीं है। उन्होंने बताया कि किन्नौर और लाहौल स्पीति में ग्रेनाइट रॉक बहुत ज्यादा हैं। इनमें बरसात का पानी भरने से बटसेरी और न्यूगलसेरी जैसे हादसे होने का अंदेशा बना रहता है। प्रदेश के दूसरे जिलों की मिट्टी बरसात में पानी रिसने से स्पंज की तरह हो जाती है। जमीन में अधिक पानी भरने पर मिट्टी फूलने लगती है। इससे भूस्खलन की घटनाएं हो जाती हैं।