स्वामीनाथन आयोग व शांता समिति की सिफारिशों से जुड़ी है पृष्ठभूमि

सौरभ सूद | टी एन आर
वर्ष 1965 में जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया तो भारत को सीमित साधनों के साथ युद्ध में उतरना पड़ा। पाकिस्तान को अमरीका सैन्य साजोसामान समेत हर मदद दे रहा था, जबकि भारत खाद्यान्न तक के लिए अमरीका पर निर्भर था। युद्ध शुरू हुआ तो अमरीका ने भारत को खाद्यान्न आपूर्ति रोक दी। उस समय देश के समक्ष न केवल दुश्मन से लडऩे की चुनौती थी, बल्कि खाद्यान्न अभाव से निपटने का संकट भी था। इन दोनों चुनौतियों को स्वीकार कर तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा देकर सरहद पर लड़ रहे जवान और खेतों में अन्न उगा रहे किसान का न केवल हौसला बढ़ाया, बल्कि खुद उपवास रखकर देशवासियों को खाद्यान्न बचाने की प्रेरणा दी, लेकिन दुर्भाग्यवश आज की परिस्थितियां एकदम विपरीत हैं।
देश का जवान जहां पैंशन में कटौती के प्रस्ताव को लेकर चिंतित है, वहीं किसान खेती व घर-परिवार छोडक़र कोरोना संकट के बीच बीते साल से दिल्ली सीमा पर टिकरी बॉर्डर पर आंदोलनरत हैं। कोरोना काल के बीच अचानक लागू 3 नए कृषि सुधार कानूनों को लेकर केंद्र सरकार के लाख दावों के बावजूद किसान यह विश्वास नहीं कर पा रहा है कि ये कानून उसके हित में हैं। शुरुआती दौर में आंदोलन के प्रति सरकार की बेरुखी ने भी किसानों के गुस्से की आग में घी डालने का काम किया। सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस आंदोलन की नौबत क्यों आई? सरकार जिन कृषि कानूनों को किसानों के लिए लाभकारी बता रही है, किसान उन्हें क्यों विनाशकारी मान रहे हैं। इसकी पृष्ठभूमि वर्ष 2004 में स्वामीनाथन राष्ट्रीय किसान आयोग व 2015 में शांता कुमार समिति की सिफारिशों से जुड़ी है।
स्वामीनाथन आयोग का सी-2 फार्मूला
18 नवम्बर 2004 को केंद्र सरकार द्वारा प्रो. एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय किसान आयोग ने अपनी 201 सिफारिशों की 4 रिपोर्टें सरकार को सौंपी थीं। आयोग ने कृषि को संविधान की समवर्ती सूची में शामिल करने का सुझाव दिया था। इन सिफारिशों में किसानों को सबसे अधिक ‘सी-2 फार्मूला’ पसंद आया। इस फार्मूले के तहत आयोग ने सरकार को सुझाव दिया कि फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य उस फसल की कुल लागत (इसमें बीज, खाद, कीटनाशक, समय-समय पर बुलाए मजदूरों की मजदूरी, ईंधन, सिंचाई, अन्य खर्चों के अलावा किसान और उसके परिवार की मजदूरी भी शामिल है) का डेढ़ गुणा होना चाहिए। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का दावा है कि सरकार स्वामीनाथन आयोग की 201 सिफारिशों में से 200 को स्वीकार कर चुकी है। केवल सी-2 फार्मूले को लागू करना बाकी है। इसके लिए भी 22 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की गई है।
देश मे 11.24 प्रतिशत भूमिहीन किसान
स्वामीनाथन आयोग ने अपने अध्ययन में पाया कि देश में 15 एकड़ से अधिक कृषि भूमि वाले केवल 2.62 प्रतिशत किसान परिवार हैं, जबकि 5 से 14.99 एकड़ वाले 12.09 प्रतिशत, 2.5 से 4.99 एकड़ वाले 13.42 प्रतिशत, 1 से 2.49 एकड़ वाले 20.52 प्रतिशत और 0.01 से 0.99 एकड़ जमीन वाले 40.11 फीसदी किसान परिवार हैं। 11.24 प्रतिशत किसान परिवारों के पास कृषि भूमि ही नहीं है। ये भूमिहीन किसान दूसरों की जमीन पर खेती करते हैं
शांता कुमार समिति की सिफारिशें
मोदी सरकार द्वारा अगस्त 2014 में हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार की अध्यक्षता में गठित उच्चस्तरीय समिति ने जनवरी 2015 में सरकार को सौंपी रिपोर्ट में कृषि सुधार की कई सिफारिशें कीं। समिति ने कहा कि भारतीय खाद्य निगम को गेहूं एवं धान की खरीद का काम राज्यों को सौंप राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत संबंधित राज्य के लिए आवश्यक अनाज के बाद राज्य सरकारों से सरप्लस अनाज ही लेना चाहिए। समिति ने भारतीय खाद्य निगम को भंडारण का काम सैंट्रल वेयर हाउसिंग कारपोरेशन, स्टेट वेयर हाऊसिंग कारपोरेशन, राज्य सरकारों और निजी कंपनियों को सौंपने की भी सिफारिश की। समिति ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का दायरा घटाकर इसे देश की 67 प्रतिशत आबादी की बजाय 40 प्रतिशत आबादी तक सीमित करने की सिफारिश भी की।
निजी कंपनियों को खरीद-भंडारण की अनुमति के कानून पर गतिरोध
शांता समिति का सबसे महत्वपूर्ण सुझाव निजी कंपनियों को फसल खरीद एवं भंडारण का अधिकार दिलाने से संबंधित है। समिति की सिफारिश के अनुसार ही केंद्र सरकार ने बिचौलियों पर अंकुश लगाने का कानून बनाया जो किसानों के गुस्से का सबसे बड़ा कारण है। समिति ने यह भी सिफारिश की कि सरकार फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों को दिए जाने वाले बोनस पर रोक लगाए। साथ ही करीब 7000 रुपए प्रति हैक्टेयर के हिसाब से सब्सिडी व फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य की राशि सीधे लाभार्थी किसानों के खातों में डाली जाए।
पंजाब और हरियाणा मंडी सिस्टम के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण
नए कृषि सुधार कानूनों से पंजाब और हरियाणा के किसान इसलिए ज्यादा चिंतित हैं, क्योंकि ये दोनों राज्य कुछ खामियों के बावजूद मंडी सिस्टम के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। दोनों राज्यों में ए.पी.एम.सी. एक्ट के तहत स्थायी मंडियां हैं, जबकि अन्य राज्यों में मंडी सिस्टम बेहद कमजोर है। शांता कुमार समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में जिक्र किया है कि केवल 6 प्रतिशत किसानों को ही केंद्र सरकार द्वारा 22 फसलों के लिए घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य का पूरा लाभ मिल पाता है। इनमें पंजाब एवं हरियाणा के किसान अग्रणी हैं।
किसानों को मंडी सिस्टम समाप्त होने का सता रहा भय
बिहार में वर्ष 2006 तक ए.पी.एम.सी. एक्ट लागू था, लेकिन यह एक्ट समाप्त करने के बाद बिहार के किसान की हालत और खराब हुई है। उदाहरण के तौर पर पंजाब एवं हरियाणा में जो धान 1888 रुपए प्रति क्विंटल के समर्थन मूल्य पर बिका, वही धान बिहार में किसान से 1100-1150 रुपए प्रति क्विंटल खरीदा गया। पंजाब एवं हरियाणा के किसानों को यही डर सता रहा है कि मंडी सिस्टम समाप्त हो जाने के बाद कहीं उनकी हालत भी बिहार के किसान जैसी न हो जाए। इसलिए किसान आंदोलन का सबसे बड़ा मुद्दा न्यूनतम समर्थन मूल्य की लिखित गारंटी और मंडी सिस्टम कायम रखना ही है।