मोदी-शाह-नड्डा की गुड बुक में शामिल, मिशन 2022 के लिए मिला फ्री हैंड

सौरभ सूद | टी एन आर
पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में सत्ता के साढ़े 3 साल पूरा करने जा रहे जयराम ठाकुर तमाम राजनीतिक झंझावातों के बीच संगठन व सरकार में मजबूत होकर उभरे हैं। यही वजह है कि सूबे में मिशन 2022 व आगामी उपचुनावों को लेकर शिमला में आहूत 3 दिनी चिंतन बैठक के बाद भगवा पार्टी ने साफ ऐलान कर दिया कि अगले साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ही कमान संभालेंगे। मिशन रिपीट की व्यूहरचना के लिए जयराम को पार्टी हाइकमान ने फ्री हैंड दे दिया है।
दिलचस्प पहलू यह है कि बीते हफ्ते जब जयराम दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह सहित अन्य बड़े नेताओं से मुलाकात करने गए थे तो प्रदेश में सोशल मीडिया पर उनकी कुर्सी छिनने की अफ़वाह तैरने लगी थी। दिल्ली से लौटे मुख्यमंत्री ने तब इन अफवाहों पर सधी प्रतिक्रिया दी थी। दरअसल, 2017 के हिमाचल विधानसभा चुनावों में भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित दिग्गज नेता प्रेम कुमार धूमल की अप्रत्याशित हार के बाद प्रदेश में नेतृत्व के मसले पर कुछ दिन के लिए बनी उहापोह की स्थिति के बाद मोदी व शाह की जोड़ी ने संघ की सहमति से जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री पद पर आसीन करवाया था।
इससे पहले 2008 से 2012 तक धूमल सरकार में काबीना मंत्री रहे जयराम की गिनती लो प्रोफाइल मंत्रियों में होती थी। हालांकि संगठन के अनुभव में वह अन्य बड़े नेताओं से कहीं भी कम नहीं थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद जयराम ने अपने मंत्रिमंडल में अनुभव के साथ युवा तुर्कों को भी शामिल किया। पहले ही साल सूबे के करीब 80 फीसदी विधानसभा क्षेत्रों में जाकर जमीनी हालात परखे। मोदी सरकार की तर्ज पर गरीबों के घर तक रसोई गैस पहुंचाने वाली लोकप्रिय उज्ज्वला योजना, सरकारी बाबुओं के अड़ियल रवैये से त्रस्त लोगों की दिक्कतें मौके पर हल करने हेतु जनमंच कार्यक्रम जैसी योजनाओं का आग़ाज़ किया। आम जनता तक सुलभ व सादगी पसन्द मुख्यमंत्री की छवि बनाई। दूसरे साल धर्मशाला में पीएम मोदी को बुलाकर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का सफल आयोजन करवाया। इस समिट में पहली बार देश व विदेशों से बड़े उद्योगपतियों ने हिमाचल जैसे छोटे राज्य में कदम रख कारोबार की संभावनाएं परखीं। 93000 करोड़ के निवेश का खाका बना। 2019 के लोकसभा चुनाव में चारों सीटों पर 3 लाख से अधिक वोटों के अंतर की रिकॉर्ड जीत ने जयराम सरकार को सबल दिया। फिर 2 उपचुनावों में भी जीत मिलने से जयराम की पैठ और मजबूत हुई।
इन उपलब्धियों के बीच बीते साल अचानक आई कोरोना महामारी ने जयराम सरकार के सामने बड़ी चुनौती पेश की। अपनी टीम के साथ मुख्यमंत्री ने दिन-रात काम कर इस भयानक आपदा से निपटने का प्रयास किया है। संगठन के स्तर पर 2018 में आए पत्र बम, अफसरशाही के हावी होने, धूमल समर्थक नेताओं को हाशिये पर धकेलने के आरोपों, कुछ विधायकों व नेताओं के बीच मतभेदों के बावजूद जयराम ठाकुर कुशलता से सरकार चलाने में कामयाब रहे हैं। हाल ही में 4 नगर निगम के चुनावों में मिश्रित जीत पार्टी व सरकार के लिए निश्चित ही चिंता का कारण बनी है। जयराम की अगली परीक्षा फतेहपुर, जुब्बल कोटखाई विधानसभा व मंडी लोकसभा सीट के उपचुनाव में होगी जोकि वर्तमान सदस्यों के असामयिक निधन से खाली हुई हैं।
राजनीतिक परिपक्वता से छोड़ी छाप
मुख्यमंत्री जयराम ने अब तक के कार्यकाल में अपनी राजनीतिक सूझबूझ व सादगीपूर्ण व्यवहार के चलते प्रदेश ही नहीं बल्कि दिल्ली के लुटियंस जोन तक अपनी छाप छोड़ी है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह व राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा की गुड बुक में शामिल जयराम आलाकमान की पसंद बन हुए हैं। पड़ोसी हरियाणा व उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों के मुकाबले जयराम विवादित बयानों से भी दूर रहते हैं। सियासी ईगो को पीछे छोड़ वे छोटे से छोटे कार्यकर्ता से भी संवाद कायम रखते हैं।
धूमल व अनुराग संग मुलाकातों का सच
भाजपा का शीर्ष नेतृत्व जनता है कि प्रो धूमल की लोकप्रियता व प्रभाव प्रदेश भर में बरकरार है। वे अब भी आम कार्यकर्ताओं के दिल में बसते हैं। मिशन रिपीट में उनको व समर्थकों को अनदेखा करना भारी पड़ सकता है। जमीनी हालात भांप कर दिल्ली से शीर्ष नेतृत्व ने मुख्यमंत्री को धूमल खेमे की तमाम शिकायतें दूर कर उचित सम्मान देने की हिदायत दी है। यही कारण है कि शिमला में प्रोटोकॉल के विपरीत मुख्यमंत्री ने कोर कमेटी की बैठक से इतर खुद पूर्व मुख्यमंत्री धूमल व अनुराग से अकेले मुलाकात कर गिले-शिकवे दूर किये। इससे पहले जयराम समीरपुर जाकर भी धूमल से भेंट कर चुके हैं।